भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

चमेली / श्रीनाथ सिंह

863 bytes added, 10:38, 5 अप्रैल 2015
'{{KKRachna |रचनाकार=श्रीनाथ सिंह |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatBaalKavita...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKRachna
|रचनाकार=श्रीनाथ सिंह
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatBaalKavita}}
<poem>
धूल उड़ी या बरसा पानी,
मूर्ख बढ़े या उपजे ज्ञानी।
सबको हँसती मिली चमेली,
फिर उजड़ी फिर खिली चमेली।
राजाओं में ठनी लड़ाई,
जीत हुई या आफत आई।
महल ढहे या उठी हवेली,
फिर उजड़ी फिर खिली चमेली।
भय चिन्ता को पास न लाओ,
आगे बढ़े बराबर जाओ।
भूलो मत यह सखा सहेली,
फिर उजड़ी फिर खिली चमेली।
</poem>