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आम / श्रीनाथ सिंह

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<poem>
घर में मेरे आये आम,
मजे बड़े ले आये आम।
मुन्नू, चुन्नू, चंपा, चंदो,
सबने मिल कर खाये आम।
बिन दातों की मुन्नी से हैं,
उठते नहीं उठाये आम।
गली गली में छाये आम,
मजे बड़े ले आये आम।
आंधी आई टूटे आम,
लड़कों ने मिल लूटे आम।
देखो जरा संभल कर चूसो,
कहीं न दब कर फूटे आम।
ओ हो! कपड़े रंगे तमाम,
मजे बड़े ले आये आम।
</poem>