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{{KKRachna
|रचनाकार='सज्जन' धर्मेन्द्र
|संग्रह=ग़ज़ल कहनी पड़ेगी झुग्गियों पर / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
अच्छे बच्चे सब खाते हैं।
कहकर जूठन पकड़ाते हैं।
कर्मों से दिल छलनी कर वो,
बातों से मन बहलाते हैं।
ख़त्म बुराई कैसे होगी,
अच्छे जल्दी मर जाते हैं।
जीवन मेले में सच रोता,
चल उसको गोदी लाते हैं।
कैसे समझाऊँ आँखों को,
आँसू इतना क्यूँ आते हैं।
कह तो देते हैं कुछ पागल,
पर कितने सच सह पाते हैं।
</poem>
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|रचनाकार='सज्जन' धर्मेन्द्र
|संग्रह=ग़ज़ल कहनी पड़ेगी झुग्गियों पर / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
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<poem>
अच्छे बच्चे सब खाते हैं।
कहकर जूठन पकड़ाते हैं।
कर्मों से दिल छलनी कर वो,
बातों से मन बहलाते हैं।
ख़त्म बुराई कैसे होगी,
अच्छे जल्दी मर जाते हैं।
जीवन मेले में सच रोता,
चल उसको गोदी लाते हैं।
कैसे समझाऊँ आँखों को,
आँसू इतना क्यूँ आते हैं।
कह तो देते हैं कुछ पागल,
पर कितने सच सह पाते हैं।
</poem>