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{{KKRachna
|रचनाकार=नरेश कुमार विकल
|संग्रह=अरिपन / नरेश कुमार विकल
}}
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<poem>
नव-नव युग अछि नव-नव फैशन
नवल लोक सभ आबय रे।
सुग्गा-मैना क्यो नहि पोसथि,
एलसीसियन मन भाबय रे।
युवती सभ सँ भार असहृ भेल
बॉब-हेयर छँटबाबय रे।
युवक वृन्द सभ देखि-देखि कऽ
हिप्पी कट कटबाबय रे।
तजि साड़ी नारी पहिरै छथि,
पैण्ट-शूट आ पीस्ट रे
जँ देखती साड़ी धोती कें,
कहती, छथि अशिष्ट रे।
बैण्ड बजाऽ हसबैण्ड मंगै छथि,
जे पाछाँ चलनि बाजार रे।
पति छथि कतहु किरानी बऽनल
अपगे ओकर सरकार रे।
भनहि ‘विकल’ कवि सुनू यौ बाबू,
ई अछि युगक व्यवहार रे।
श्रोता सभी छथि गोट पचीसें,
कवि हथि कैक हजार रे।
</poem>
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|रचनाकार=नरेश कुमार विकल
|संग्रह=अरिपन / नरेश कुमार विकल
}}
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<poem>
नव-नव युग अछि नव-नव फैशन
नवल लोक सभ आबय रे।
सुग्गा-मैना क्यो नहि पोसथि,
एलसीसियन मन भाबय रे।
युवती सभ सँ भार असहृ भेल
बॉब-हेयर छँटबाबय रे।
युवक वृन्द सभ देखि-देखि कऽ
हिप्पी कट कटबाबय रे।
तजि साड़ी नारी पहिरै छथि,
पैण्ट-शूट आ पीस्ट रे
जँ देखती साड़ी धोती कें,
कहती, छथि अशिष्ट रे।
बैण्ड बजाऽ हसबैण्ड मंगै छथि,
जे पाछाँ चलनि बाजार रे।
पति छथि कतहु किरानी बऽनल
अपगे ओकर सरकार रे।
भनहि ‘विकल’ कवि सुनू यौ बाबू,
ई अछि युगक व्यवहार रे।
श्रोता सभी छथि गोट पचीसें,
कवि हथि कैक हजार रे।
</poem>