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|रचनाकार=नरेश कुमार विकल
|संग्रह=अरिपन / नरेश कुमार विकल
}}
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<poem>
सून्तलि राति उचाट मोन पर
चलै ने कोनो जोर छै।
ने जानि हम कतऽ नुकाएल
हमर मोनक चोर छै।
मोनक सिनेहिया तोरे पर छै
कारी केश मे टाँगल
एखनो हमरा मोन पड़ैये
तोहर ठोर राँगल।
चम-चम आँखि चमकैछौ तोहर
काजर कारी कोर छै।
ने जानि हम कतऽ नुकाएल
हमर मोनक चोर छै।
दुधिया दाँत सँ दाबि-दाबि आ‘
पीसि-पीसि कें बाजल।
तखने हमर कोंढ़ फटैये।
मोनक मंहफा साजल।
उड़ै वसन्ती पुरबैया मे-
तोहर आँचरक कोर छै।
ने जानि हम कतऽ नुकाएल
हमर मोनक चोर छै।
हमर मोनक दीप जरैये
तोहरे सुधिकेर बाती सँ।
धीया-पूताक जाड़ हटैछै
जहिना तौनीक गाँती सँ।
तहिना तौनीक गाँतीक आस मे
भऽ गेल सांझे भोर छै।
ने जानि हम कतऽ नुकाएल
हमर मोनक चोर छै।
</poem>
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|संग्रह=अरिपन / नरेश कुमार विकल
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सून्तलि राति उचाट मोन पर
चलै ने कोनो जोर छै।
ने जानि हम कतऽ नुकाएल
हमर मोनक चोर छै।
मोनक सिनेहिया तोरे पर छै
कारी केश मे टाँगल
एखनो हमरा मोन पड़ैये
तोहर ठोर राँगल।
चम-चम आँखि चमकैछौ तोहर
काजर कारी कोर छै।
ने जानि हम कतऽ नुकाएल
हमर मोनक चोर छै।
दुधिया दाँत सँ दाबि-दाबि आ‘
पीसि-पीसि कें बाजल।
तखने हमर कोंढ़ फटैये।
मोनक मंहफा साजल।
उड़ै वसन्ती पुरबैया मे-
तोहर आँचरक कोर छै।
ने जानि हम कतऽ नुकाएल
हमर मोनक चोर छै।
हमर मोनक दीप जरैये
तोहरे सुधिकेर बाती सँ।
धीया-पूताक जाड़ हटैछै
जहिना तौनीक गाँती सँ।
तहिना तौनीक गाँतीक आस मे
भऽ गेल सांझे भोर छै।
ने जानि हम कतऽ नुकाएल
हमर मोनक चोर छै।
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