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वर्षा गीत / नरेश कुमार विकल

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<poem>
घर आंगन मे नाचै छै
मेघ छमा छम।

घुरि-घुरि-बदरा हमरा डराबय
पुरिबा-पछबाकें संग
मोन मस्त भऽ झूमि उठैये
जेना पीबने भंग

अन्हरिया मे चान जकाँ
चमकै चमा चम।

पात-पात मोती ओंघरायल
भरल चारू पोर
चूबि रहल छप्पर सँ बुन्नी
विरहिणि आँखि सँ नोर
डीह-डाबर मे झिंगुर
बजाबै सरगम।

कनियें कनखी मारै कुमुदिनी
हंसय कमल केर फूल
युवतीगण सभ हहरि रहलि अछि
कयलनि विधाता भूल

हीना कें सेंटो करैछै
गमा गम।
</poem>
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