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हे भोला बाबा / नरेश कुमार विकल

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<poem>

हे भोला बाबा एक बेर नजरि फेर दिअऽ।
हम भिक्षुक बनि मांगि हल छी आँखि खोली के दिअऽ।

हम दीन-हीन साधन विहीन
कर्तव्य हीन सेवा विहीन
पूजा-पाठ कें रस्म ने जानि
कण्ठी-माला ने सकैंछ गिन
मोटर साईकिल कें इच्छुक छी
बदला मे जे उपहार लिअऽ
हे भोला बाबा ! एक बेर नजरि फेर दिअऽ।

जल्दी एकटा दिअऽ कीन
देखब कश्मीर केर सीन
मुदा एकटा बात अजीब
हम जाएब ने अहाँ सँ भऽकऽ भीन
तें हेतु हमर ई रिक्वेस्ट कें
प्लीज अहाँ राखि लिअऽ
हे भोला बाबा! एक बेर नजरि फेर दिअऽ।

ई बाघ-छाल कें छोड़ि मुदा
टेरीलीन के सूट सिआऊ
त्रिशुल-डमरू छोड़ि दिअऽ
थ्री-एक्स रम एकटा लाऊ
हिप्पी कट हेयर राखू भोला
जटाजूट कें मुड़ा लिअऽ
हे भोला बाबा! एक बेर नजरि फेर दिअऽ।

दोष-दाष किछु नहि मानब
एक शो सिनेमा चलू
पार्वती संग मोटरसाइकिल पर
सांपक माला कें खोलू
बैसि बॉक्स मे दुनू गोटे
फण्टा, कॉफी लिअऽ।
हे भोला बाबा! एक बेर नजरि फेर दिअऽ।

बहुत देर सँ विनती कयलहुँ, आशीष हमरा दिअऽ।
जतऽ बाप संग बेटी नाचय, ओतहि जनम फेरऽ दिअ।
</poem>
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