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कोन कोना / नरेश कुमार विकल

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<poem>
सूनू बौआ मोर!
कान मे बाजू बौआ जायब ककरा ओर ?
आब ने भेंटत बौआ तिरहुत मे तिलकोर,
कतऽ गेलै करमी आ‘ पटुआक झोर,

साग आ‘ पाग ने कोकटीक तौनी,
डालाक भार आ ने सीकीक मौनी,
महफाक ओहार उड़ल देखू कनियाँ गोर,
स्नो आ‘ पाउडर सँ कारियो भेलै गोर,

सिनुआरि में सिंगरहार नै दरभंगा मे अंगा,
सकरी-समस्तीपुर मे सेहो लुच्चा-लंगा,
पण्डौल मे पावरोटी भेंटत चहुँ ओर,
सौराठक सैंडविच कयने अछि जोर,

कपिलेश्वर मे कटलेट भेंटत टटुआर मे टोस्ट,
बुझि ने पड़त बौआ के गेस्ट आ‘ होस्ट ?
लोहनाक लिपिस्टिक सँ रांगल छैक ठोर,
हाइ हीलक चप्पल मे नाचै चारू पोर,

नेहरा मे झकझक नायलॉन कयने अछि शोर,
जार्जेट जनकपुर मे कतऽ अछि पटोर,
माय गेली मम्मी अयली टप-टप खसै नोर,
डैडी आ डार्लिंग कें भेंटत आर ने छोर।
</poem>
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