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कचरा री कांण / सत्यप्रकाश जोशी

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और फैंको अमीर उमरावां
पैक करण रा कागद
आज तौ थांरो तिंवार है
रंग-बिरंगा, फूल-फांटा छपियोड़ा
चीकणा कागदां सूं बांध-बांध
लावोला अलेखां भेंटां
अर दिनूगां क्रिसमस रा रूंख हेठै बैठ
सांता क्लॉज रा थैला सूं बाढोला
अेक दूजा रा उपहार
पछै फाड़-फाड़ फैकोला पारसलां रा कागद?
संसार रा साधनहीण देसां रा
लाखां किरोड़ां टाबर रैयग्या अणपढ
कागद कठै
अर है तौ मूंघा कित्ता ?
किताबां कठै? कागद कठै?
फैकों इणी भांत गाभा
दातण करण रा बुरस
हजामत रा पाछणा
मोटरां, घर बार,
फगत अेक बार काम में लियोडा सामान
म्हारी दुनिया नै दरकार है आं सगळी चीजां री
दवायां थोक बंध, भलां ई नुकसाण करती होवै
दवायां तौ दवायां होवै,
अर बै ई परदेसी।
तौ फैकों अमीर उमरावां
थांरी सभ्यता र अहनाण रा कीं छांटा
फैंको-फैंको।
</poem>
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