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श्रीरामचन्द्र कृपालु भजु मन हरण भवभय दारुणम् ।<br>
नवकञ्ज लोचन कञ्ज मुखकर कञ्जपद मुख कर कञ्ज पद कञ्जारुणम् ॥ १॥<br><br>
कंदर्प अगणित अमित छबि नव नील नीरज सुन्दरम् ।<br>
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