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<poem>
कविता हुवैला-
छे’लो रूंख।

प्रीत रा मरूथळां
निपजैला कोरी प्रीत।
चिड़कल्यां लेवैला फेरूं बासो
रूंख री रेसमी छियां।

पेलै दिन रै ढाळै
छैकड़लै दिन आ दुनिया-
पाछी थारी-म्हारी हुवैला
</poem>
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