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मेहां रै पछै / निशान्त

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<poem>
मेहां रै पछै
रूंख
लदीजग्या है
पŸाां-फूलां सूं

खेत भरीजग्या है
लीली छम फसलां सूं

बै ’वण लाग्यौ है
ठण्डो बायरो

आभै सूं टपकण लाग्यौ है
इमरत-सो

हां ! इस्यै
ठण्डै-मीठै
दिनां वास्तै ई तो
सयौ हो
जेठ रो
तातो तावड़ो

लाय-सी लगांवणौ
बायरो।
</poem>
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