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|रचनाकार=निशान्त
|संग्रह=धंवर पछै सूरज / निशान्त
}}
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<poem>
आथण पौर
मजूरी मांगण सारू
दो मजूर आया
सैठ री दुकान
अेक, जकै चिणी ही भींत
बड़्यो
संकतो-संकतो
कनै पड़ी कुरसी छोड़’र
बैठ्यो तळै
जित्ता दिया
बित्ताई ले लिया
दूजो हो पल्लेदार/युनियन रो पल्लेदार
पूरै ठरकै सूं ली
उण बोर्यां री ढुआई।
</poem>
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आथण पौर
मजूरी मांगण सारू
दो मजूर आया
सैठ री दुकान
अेक, जकै चिणी ही भींत
बड़्यो
संकतो-संकतो
कनै पड़ी कुरसी छोड़’र
बैठ्यो तळै
जित्ता दिया
बित्ताई ले लिया
दूजो हो पल्लेदार/युनियन रो पल्लेदार
पूरै ठरकै सूं ली
उण बोर्यां री ढुआई।
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