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मसीन अर आदमी / निशान्त

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<poem>
कानाबाती रा
तार बिछावण सारू
खोदै ई खाई
अेक मसीन

देख ’र म्हैं सोच्यो-
ओ ई काम
मजूरां नै मिलतो
तो कित्तांरो पेट भरतो

दूजै दिन कीं
गौर सूं ख्यांती
तो कीं सावळ लागी

बा खाई इत्ती
डूंगी खोदै ही
कै म्हनै लाग्यो
आदमी स्यात ई इत्ती
खोद सकै

पण दसेक
दिनां पछै
म्हैं देख्यो कै
सड़क रै किनारै
जठै दरख्त अड़ण लागग्या
बठै मजूर
खाई पटण लागग्या।
</poem>
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