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नूंतो / निशान्त

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<poem>
अेक चोखै-भेलै
रू-डोळ आळै
मुखिया रै घरां
ब्या’व में/जीमण आया
बडै बडै
सरीरां रा धणी

बुलावण आळां बुला लिया
अर आवणआळा आग्या

पण साफ निगै आवै हो
बां-बां रो फर्क

दूंदआळां रै
आवण-जावण में कीं
फर्क नी पड़ै

उल्टा बां री तो ईं तरियां
दाल आच्छी गळै

पण बीं नै सै
के फायदो है इसै
लोगां नै बुलावण में
अपणै आप नै
भीड़ में रूळावण में।
</poem>
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