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|रचनाकार=निशान्त
|संग्रह=धंवर पछै सूरज / निशान्त
}}
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{{KKCatRajasthaniRachna}}
<poem>
आं दिनां
बिरखा रो जोर
च्यारूं कूंट हरी-भरी
इसै में
पीठ पाछै झोळी लटाकायां
बो अेक मजूर
पारकै खेत री डोळी सूं
काटै घास
सरड़-सरड़
दूजी कानी
खेत-धणी
काटै जुंवार क्यारी सूं
जरड़-जरड़
बिरखा सूं पै’ली
आ बात कठै ही
जद तो लू ही
बळ्योड़ा खेत हा
बां दिनां
दोनूं दुःखी
आं दिनां
दोनूं सुखी।
</poem>
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आं दिनां
बिरखा रो जोर
च्यारूं कूंट हरी-भरी
इसै में
पीठ पाछै झोळी लटाकायां
बो अेक मजूर
पारकै खेत री डोळी सूं
काटै घास
सरड़-सरड़
दूजी कानी
खेत-धणी
काटै जुंवार क्यारी सूं
जरड़-जरड़
बिरखा सूं पै’ली
आ बात कठै ही
जद तो लू ही
बळ्योड़ा खेत हा
बां दिनां
दोनूं दुःखी
आं दिनां
दोनूं सुखी।
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