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झूठ रो पाठ / निशान्त

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<poem>
लारलै दिनां
हुयौ पंचायती-चुणाव

पांच-च्यार
भाई-बेली
हुया खड़्या

सोच्यो-
किणनै करां निराज
किणनै राजी ?

ईं वास्तै
सगळां नै ई कैयो-
देस्यां

पछै आ बात गोखी
तो निगै आयो-
ओ क्यां रो चुणाव
ओ तो है
झूठ रो पाठ।
</poem>
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