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कोजा दिन / निशान्त

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|संग्रह=आसोज मांय मेह / निशान्त
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<poem>
'''अेक'''

बिना मेह आळा
अै आसाढ रा दिन
कित्ता कोजा है
सूरज दिनूंगै सूं लैय'र
रात तांई
बरसाव आग
कदे-कदे चढ ज्यावै
गर्द अकास
अर दिन उगण -छिपण रो भी
ठा नीं चालै
गर्द हरेक जिग्यां
जम ज्यावै
बापड़ी लुगायां
सारै दिन हटावै
अेक नीं
दो नीं
पन्द्रह दिन होग्या
आं दिनां नै
इकलार
पैल दिन स्यूं
अगलो दिन
भैड़ो निकळै
अै दिन ईं मायनै में भी
कोजा है कै
आं दिनां मांय
आं दिना नै
काटण रै सिवा
और कीं नीं सूझै ।

'''दो'''

आजकल
म्हारी उम्मीदां पर
पाणी नीं
रेत अर आग फिरै
जकी रोज
आभै स्यूं गिरै ।
</poem>
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