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|संग्रह=आसोज मांय मेह / निशान्त
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<poem>
लोग
खास कर‘र
नूंवी पीढी रा लोग
बातां करै
नई-नई कारां री
कारां री रफ्तार री
पण मन नही मन में
म्हैं कैऊं बानै
कठै दौड़ावोला
थै थारी कार ?
कठई तो थारी कार
दरड़ां में
खड़खड़ावैगी
अर कठैई जाम में
का भीड़ में
फस ज्यावैगी ।
</poem>
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