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अचरज / निशान्त

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|संग्रह=आसोज मांय मेह / निशान्त
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<poem>
'''अेक'''

घणकरा‘क पढ्या-लिख्या
फिरै बेरुजगार
पण फर ई
घणां ई पढै
रुजगार सारू ।

'''दो'''

पैलां
पैलां खड़्या होंवता
बडा-बडेरा
अब पैलां
खड़्या होवै
टाबर
जावण सारू
ट्यूशन
का कान्वेंट ।

'''तीन'''

चाल‘र
मिलण आयड़ो
मिनख मूंडो ताकतो रैवै
अर कानाबाती माखर आयड़ो
पैलां बात करज्यै ।
</poem>
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