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हो न हो / निशान्त

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|संग्रह=आसोज मांय मेह / निशान्त
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<poem>
टांग‘र
सइकल पर
लंबी सी धजा
टेक गबरू
चाल्यो है
सालासर धाम
फरूकती धजा
आवै बार-बार
आंख्यां आगै
सडक भरी बगै
साधनां स्यूं
सोचूं - आ अंध सरधा
ले न ल्यै कठैई
बीं री ज्यान !
</poem>
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