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बाजार (2) / निशान्त

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<poem>
बाजार हिला राख्या है
इस्या कै
होळी आळै
अेक दिन भी
नीं सरयो बीं बिना
बो भी जाणै हो
म्हारी रग
खुलग्यो
हांडी बगत तांई
घणकरो -सो
</poem>
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