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Kavita Kosh से
इनसान है कि जनमता है
और विरोध के वातावरण में आ गिरता है :
उस की पहली साँस संघर्ष का पैंतरा है
उस की पहली चीख चीख़ एक युद्ध का नारा है
जिसे यह जीवन-भर लड़ेगा ।लड़ेगा।
स्वयं अपनी नियति बन
अपने को जनना है ।है।
एक बार का कल्पक
और सनातन क्रान्ता है :
और आजीवन ममता है :
पर उन की कल्पना, कृपा और करुणा से
अनुक्षण अपने को परिक्रान्त करते हुए
अपनी नयी नियति बनते चलें ।चलें।
हमें लड़ना है निरन्तर,
आमरण अविराम--अविराम—
पर सर्वदा जीवन के लिए :
अपनी हर साँस के साथ
अपनी पहली साँस और चीख चीख़ के साथ
हम जिस जीवन के
आज होकर सयाने
उसे हम वरते हैं :
उस के पक्षधर हैं हम--हम—
इतने घने
कि उसी जीने और जिलाने के लिए
स्वेच्छा से मरते हैं !
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