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एक भूतपूर्व विद्रोही का आत्म-कथन / गजानन माधव मुक्तिबोध
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17:50, 19 जनवरी 2008
पसली की टूटी हुई हड्डी।
भयंकर
भयँकर
है! छाती पर वज़नी टीलों
::को रखे हुए
महसूस करते जाना भीषण है।
भयंकर
भयँकर
है।
वाह क्या तजुर्बा है!!
अनिल जनविजय
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