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|संग्रह=वंशी और मादल / ठाकुरप्रसाद सिंह
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यह मेरे जीवन का जल
 
कमल-पात पर हिम-बूंदों-सा टलमल रे
 
कितना चंचल
 
इसीलिए तो
 
खाता चल
 
पीता चल
 
गाता चल
 
चल रे चल
 
थोड़े ही दिन का यह छल
 
यह मेरे जीवन का जल
 
ताराओं के हास से
 
चन्दरिमा के पास से
 
आया है आकाश से
 
पा सकें तो पा सकें
 
जा रहा है हाथ से
 
हो रहा देखो ओझल
 
यह मेरे जीवन का जल
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