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जितना नूतन प्यार तुम्हारा,
उतनी मेरी व्यथा पुरानी
एक साथ कैसे निभ पाए, पायेसूना द्वार और अगवानीतुमने जितनी संज्ञाओं से, मेरा नामकरण कर डाला मैंने उनको गूँथ-गूँथकर साँसों की अर्पण की मालाअगवानी।
तुमने जितनी संज्ञाओं सेमेरा नामकरण कर डालामैंनें उनको गूँथ-गूँथ करसांसों की अर्पण की मालाजितना तीखा व्यंग्य व्यंग तुम्हारा,
उतना मेरा अंतर मानी
एक साथ कैसे रह पाए, पायेमन में आग , नयन में पानीपानी।
कभी-कभी मुस्काने वाले फूल-शूल बन जाया करते लहरों पर तिरनेवाले मझधार तिरने वाले मंझधारकूल बन जाया करते जितना गुंजित राग तुम्हारा, उतना मेरा दर्द मुखरहैएक साथ कैसे पल पाए, रह पायेमन में मौन , अधर पर बानी।वाणी।
सत्य सत्य है किंतु स्वप्न में -भी कोई जीवन होता हैस्वप्न अगर छलना है तो सत का सम्बल संबल भी जल होताहैजितनी दूर तुम्हारी मंज़िल मंजिलउतनी मेरी राह अजानीएक साथ कैसे मिल पाए, रह पायेकवि का गीत , संत की बानी।एक साथ कैसे निभ पाए, सूना द्वार और अगवानी।।
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