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जो रहीम भावी या उनमान कीकतौं, पांडव बनहिं रहीम। होति आपुने हाथ।तदपि गौरि सुनि बांझराम न जाते हरिन संग, बरू है संभु अजीम॥132॥भलो भयो घर ते छुटयो, हस्यो सीस परिखेत। काके काके नवत हम, अपत पेट के हेत॥133॥सीय न रावन साथ॥90॥
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