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रहीम दोहावली - 2

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धनि रहीम गति मीन कीजब लगि जीवन जगत में, जल बिछुरत जिय जाय। सुख दुख मिलन अगोट।जियत कंज तजि अनत बसिरहिमन फूटे गोट ज्‍यों, कहा भौंर को भाय॥101॥परत दुहुँन सिर चोट॥61॥
धन दारा अरु सुतन सोंजब लगि बित्‍त न आपुने, लग्यों रहै नित चित्त। तब लगि मित्र न कोय।नहि रहीम कोऊ लख्योरहिमन अंबुज अंबु बिनु, गाढ़े दिन को मित्त॥102॥रवि नाहिंन हित होय॥62॥
दोनों रहिमन एक सेज्‍यों नाचत कठपूतरी, जौलों बोलत नाहिं। करम नचावत गात।जान परत है काक पिकअपने हाथ रहीम ज्‍यों, ॠतु बसन्त के भांहि॥103॥नहीं आपुने हाथ॥63॥
नात नेह दूरी भली, जो जलहिं मिलाय रहीम जिय जानि। ज्‍यों, कियो आपु सम छीर।निकट निरादर होत हैअँगवहि आपुहि आप त्‍यों, ज्यों गड़ही को पानि॥104॥सकल आँच की भीर॥64॥
धूर धरत नित सीस परजहाँ गाँठ तहँ रस नहीं, कहु यह रहीम केहि काज। जग जोय।जेहि रज मुनि पतनी तरीमँड़ए तर की गाँठ में, सो ढ़ूंढ़त गजराज॥105॥गाँठ गाँठ रस होय॥65॥
नाद रीझि तन देत मृगजानि अनीती जे करैं, नर धन देत समेत। जागत ही रह सोइ।ते रहिमन पसु ते अधिकताहि सिखाइ जगाइबो, रीझेहुं कछु रहिमन उचित देत॥106॥होइ॥66॥
नहिं रहीम कछु रूप गुनजाल परे जल जात बहि, नहिं मृगया अनुराग। तजि मीनन को मोह।देसी स्वान जो राखिएरहिमन मछरी नीर को, भ्रमत भूख ही लाग॥107॥तऊ न छाँड़त छोह॥67॥
निज कर क्रिया रहीम कहिजे गरीब पर हित करैं, सिधि भावी के हाथ। ते रहीम बड़ लोग।पांसे अपने हाथ मेंकहाँ सुदामा बापुरो, दांव न अपने हाथ॥108॥कृष्‍ण मिताई जोग॥68॥
परि रहिबो मरिबो भलोजे रहीम बिधि बड़ किए, सहिबो कठिन कलेम। बामन हवैं बलि को छल्लोकहि दूषन का‍ढ़ि।चंद्र दूबरो कूबरो, दियो भलो उपदेश॥109॥तऊ नखत तें बा‍ढि॥69॥
नैन सलोने अधर मधुजे सुलगे ते बुझि गए, कहु रहीम घटि कौन। बुझे ते सुलगे नाहिं।मीठो भावे लोन पररहिमन दोहे प्रेम के, अरु मीठे पर लौन॥110॥पन्नगबेलि पतिव्रता, रति सम सुनो सुजान। हिम रहीम बेली दही, सत जोजन दहियान॥111॥बुझि बुझि कै सुलगाहिं॥70॥
पसिर पत्र झंपहि पिटहिंजेहि अंचल दीपक दुर्यो, सकुचि देत ससि सीत। हन्‍यो सो ताही गात।कहु रहीम कुल कमल रहिमन असमय केपरे, को बेरी को मीत॥112॥मित्र शत्रु ह्वै जात॥71॥
पात-पात को सीचिबोंजेहि रहीम तन मन लियो, बरी बरी को लौन। कियो हिए बिच भौन।रहिमन ऐसी बुद्धि कोतासों दुख सुख कहन की, कहो बैरगो कौन॥113॥रही बात अब कौन॥72॥
बड़ माया को दोष यहजैसी जाकी बुद्धि है, जो कबहूं घटि जाय। तैसी कहै बनाय।तो रहीम गरिबो भलोताकों बुरा न मानिए, दुख सहि जिए बलाय॥114॥लेन कहाँ सो जाय॥73॥
पुरुष पूजै देवराजसी परै सो सहि रहै, तिय पूजै रघूनाथ। कहि रहीम दोउन बनेयह देह।धरती पर ही परत है, पड़ो बैल के साथ॥115॥शीत घाम औ मेह॥74॥
पावस देखि रहीम मनजैसी तुम हमसों करी, कोइल साधे मौन। करी करो जो तीर।अब दादुर वक्ता भएबाढ़े दिन के मीत हौ, हम को पूछत कौन॥116॥गाढ़े दिन रघुबीर॥75॥
प्रीतम छवि नैनन बसिजो अनुचितकारी तिन्‍हैं, पर छवि कहां समाय। लगै अंक परिनाम।भरी सराय रहीम लखिलखे उरज उर बेधियत, आपु पथिक फिरि जाय॥117॥क्‍यों न होय मुख स्‍याम॥76॥
बड़े दीन को दुख सुनेजो घर ही में घुस रहे, लेत दया उर आनि। कदली सुपत सुडील।हरि हाथी सों कब हुती, कहु तो रहीम पहिचानि॥118॥तिनतें भले, पथ के अपत करील॥77॥
बड़े बड़ाई नहिं तजैंजो पुरुषारथ ते कहूँ, लघु रहीम इतराइ। संपति मिलत रहीम।राइ करौंदा होत हैपेट लागि वैराट घर, कटहर होत न राइ॥119॥तपत रसोई भीम॥78॥
बड़े पेट के भरन जो बड़ेन कोलघु कहें, है नहिं रहीम दुख बाढ़ि। घटि जाँहि।यातें हाथी हहरि कैगिरधर मुरलीधर कहे, दयो दांत द्वै काढ़ि॥120॥कछु दुख मानत नाहिं॥79॥
बढ़त रहीम धनाढय धनजो मरजाद चली सदा, धनौं धनी को जाई। सोई तौ ठहराय।धटै बढ़ै वाको कहा, भीख मांगि जो खाई॥121॥बड़े बड़ाई ना करेंजल उमगै पारतें, बड़ो न बोलें बोल। रहिमन हीरा कब कहै, लाख टका है मोल॥122॥सो रहीम बहि जाय॥80॥
बरू जो रहीम कानन बसियउत्‍तम प्रकृति, असन करिय फल तोय। का करि सकत कुसंग।बन्धु मध्य गति दीन हवैचंदन विष व्‍यापत नहीं, बसिबो उचित न होय॥123॥लपटे रहत भुजंग॥81॥
बिपति भए धन ना रहै, रहै जो लाख करोर। रहीम ओछो बढ़ै, तौ अति ही इतराय।नभ तारे छिपि जात हैंप्‍यादे सों फरजी भयो, ज्यों रहीम ये भोर॥124॥टेढ़ों टेढ़ो जाय॥82॥
बांकी चितवनि चित चढ़ीजो रहीम करिबो हुतो, सूधी तौ कछु धीम। ब्रज को इहै हवाल।गांसी ते बढ़ि होत दुखतौ कहो कर पर धर्यो, काढ़ि न कढ़त रहीम॥125॥गोवर्धन गोपाल॥83॥
विरह रूप धन तम भएजो रहीम गति दीप की, अवधि आस उधोत। कुल कपूत गति सोय।ज्यों रहीम भादों निसाबारे उजियारो लगे, चमकि जात खद्दोत॥126॥बढ़े अँधेरो होय॥84॥
बसि कुसंग चाहत कुसल, यह जो रहीम जिय सोस। महिमा घटी समुन्द्र गति दीप की, रावन बस्यो परोस॥127॥सुत सपूत की सोय।बड़ो उजेरो तेहि रहे, गए अँधेरो होय॥84॥
बिगरी बात बने नहींजो रहीम जग मारियो, लाख करो किन कोय। नैन बान की चोट।रहिमन बिगरै दूध कोभगत भगत कोउ बचि गये, मथे न माखन होय॥128॥चरन कमल की ओट॥ 86॥
भावी काहू न दहीजो रहीम दीपक दसा, दही एक भगवान। तिय राखत पट ओट।भावी ऐसा प्रबल समय परे ते होत है, कहि रहीम यह जानि॥129॥वाही पट की चोट॥87॥
भीत गिरी पाखान कीजो रहीम पगतर परो, अररानी वहि ठाम। रगरि नाक अरु सीस।अब रहीम धोखो यहैनिठुरा आगे रायबो, को लागै केहि काम॥130॥आँस गारिबो खीस॥88॥
भजौं तो काको मैं भजौंजो रहीम तन हाथ है, तजौं तो काको आन। मनसा कहुँ किन जाहिं।भजन तजन ते बिलग हैंजल में जो छाया परी, तेहिं रहीम जू जान॥131॥काया भीजति नाहिं॥89॥
जो रहीम भावी या उनमान कीकतौं, पांडव बनहिं रहीम। होति आपुने हाथ।तदपि गौरि सुनि बांझराम न जाते हरिन संग, बरू है संभु अजीम॥132॥भलो भयो घर ते छुटयो, हस्यो सीस परिखेत। काके काके नवत हम, अपत पेट के हेत॥133॥सीय न रावन साथ॥90॥
भूप गनत लघु गुनिन कोजो रहीम होती कहूँ, गुनी गुनत लघु भुप। प्रभु-गति अपने हाथ।रहिमन गिरि ते भूमि लौं, लखौ तौ एकै रुप॥134॥कोधौं केहि मानतो, आप बड़ाई साथ॥91॥
महि नभ सर पंजर कियोजो विषया संतन तजी, रहिमन बल अवसेष। मूढ़ ताहि लपटाय।सो अर्जुन बैराट घरज्‍यों नर डारत वमन कर, रहे नारि के भेष॥135॥स्‍वान स्‍वाद सों खाय॥92॥
मनसिज माली कै उपजटूटे सुजन मनाइए, कहि रहीम नहिं जाय। जौ टूटे सौ बार।फल श्यामा के उर लगेरहिमन फिरि फिरि पोहिए, फूल श्याम उर जाय॥136॥टूटे मुक्‍ताहार॥93॥
मथत मथत माखन रहैतन रहीम है कर्म बस, दही मही विलगाय। मन राखो ओहि ओर।रहिमन सोई मीत हैजल में उलटी नाव ज्‍यों, भीत परे ठहराय॥137॥खैंचत गुन के जोर॥94॥
मन से कहां रहीम प्रभुतब ही लौ जीबो भलो, दृग सों कहा दिवान। दीबो होय न धीम।देखि दृगन जो आदरैंजग में रहिबो कुचित गति, मन तोहि हाथ बिकान॥138॥उचित न होय रहीम॥95॥
माह मास लहि टेसुआतरुवर फल नहिं खात हैं, मीन परे थल और। सरबर पियहिं न पान।त्यों कहि रहीम जग जानिएपर काज हित, छुटे आपने ठौर॥139॥संपति सँचहि सुजान॥96॥
मांगे मुकरिन को गयोतासों ही कछु पाइए, केहि न त्यागियो साथ। कीजै जाकी आस।मांगत आगे सुख लहयोरीते सरवर पर गये, ते रहीम रघुनाथ॥140॥कैसे बुझे पियास॥97॥
मान सरोवर ही मिलैंतेहि प्रमान चलिबो भलो, हंसनि मुक्ता भोग। जो सब हिद ठहराइ।सफरिन भरे रहीम सरउमड़ि चलै जल पार ते, बक बालक नहिं जोग॥141॥जो रहीम बढ़ि जाइ॥98॥
मान सहित विष खाय केतैं रहीम अब कौन है, संभु भए जगदीस। एती खैंचत बाय।बिना मान अमृत पिएखस कागद को पूतरा, राहु कटायो सीस॥142॥नमी माँहि खुल जाय॥99॥
मांगे घटत थोथे बादर क्वाँर के, ज्‍यों रहीम पद, कितौ करो बड़ काम। तीन पैग वसुधा करी, तऊ बावने नाम॥143॥मूढ़ मंडली में सुजन, ठहरत नहीं विसेख। घहरात।स्याम कंचन में सेत ज्योंधनी पुरुष निर्धन भये, दूरि कीजिअत देख॥144॥करै पाछिली बात॥100॥
यद्धपि अवनि अनेक हैंथोरो किए बड़ेन की, कूपवन्त सर ताल। बड़ी बड़ाई होय।रहिमन मान सरोवरहिंज्‍यों रहीम हनुमंत को, मनसा करत मराल॥145॥गिरधर कहत न कोय॥101॥
मुनि नारी पाषान हीदादुर, कपि पसु गुह मातंग। मोर, किसान मन, लग्‍यो रहै घन माँहि।तीनों तारे रामजु तीनो मेरे अंग॥146॥रहिमन चातक रटनि हूँ, सरवर को कोउ नाहिं॥102॥
मंदन दिव्‍य दीनता के मरिहूरसहिं, अवगुन गुन न सराहि। का जाने जग अंधु।ज्यों रहीम बांधहू बंधैभली बिचारी दीनता, मरवा हवै अधिकाहि॥147॥दीनबन्‍धु से बन्‍धु॥103॥
मुक्ता कर करपूर करदीन सबन को लखत है, चातक-जीवन जोय। दीनहिं लखै न कोय।एतो बड़ो जो रहीम जलदीनहिं लखै, ब्याल बदन बिस होय॥148॥दीनबंधु सम होय॥104॥
यह रहीम मानै नहींदीरघ दोहा अरथ के, दिन से नवा जो होय। आखर थोरे आहिं।चीता चोर कमान केज्‍यों रहीम नट कुण्‍डली, नए ते अवगुन होय॥149॥सिमिटि कूदि च‍ढ़ि जाहिं॥105॥
यों रहीम सुख दु:ख सहतदुख नर सुनि हाँसी करै, बड़े लोग सह सांति। धरत रहीम न धीर।उदत चंद चोहि भांति सोंकही सुनै सुनि सुनि करै, अथवत ताहि भांति॥150॥ऐसे वे रघुबीर॥106॥
यह दुरदिन परे रहीम निज संग लैकहि, जनमत जगत न कोय। दुरथल जैयत भागि।बैर प्रीति अभ्यास जसठाढ़े हूजत घूर पर, होत होत ही होय॥151॥जब घर लागत आगि॥107॥
ये दुरदिन परे रहीम फीके दुवौकहि, जानि महा संतापु। भूलत सब पहिचानि।ज्यों तिय कुच आपन गहेसोच नहीं वित हानि को, आपु बड़ाई आपु॥152॥जो न होय हित हानि॥108॥
याते जान्यो मन भयोदेनहार कोउ और है, जरि बरि भसम बनाय। भेजत सो दिन रैन।रहिमन जाहि लगाइएलोग भरम हम पै धरें, सोइ रूखो है जाय॥153॥याते नीचे नैन॥109॥
रन बन व्याधि विपत्ति में, रहिमन मरै न रोय। जो रच्छक जननी जठर, सो हरि गए कि सोय॥154॥दोनों रहिमन अपने पेट सोंएक से, बहुत कह्यो समुझाय। जौ लौं बोलत नाहिं।जो तू अनखाए रहेजान परत हैं काक पिक, तो सों को अनखाय॥155॥ऋतु बसंत के माँहिं॥110॥
रहिमन अति न कीजिएधन थोरो इज्‍जत बड़ी, गहि रहिए निज कानि। कह रहीम का बात।सैंजन अति फूलै तऊ, डार पात जैसे कुल की हानि॥156॥कुलबधू, चिथड़न माँह समात॥111॥
वहै प्रति नहिं रीति वहधन दारा अरु सुतन सों, नहीं पाछिलो हेत। लगो रहे नित चित्‍त।घटत घटत रहिमन घटैनहिं रहीम कोउ लख्‍यो, ज्यों कर लीन्हे रेत॥157॥गाढ़े दिन को मित्‍त॥112॥
रहिमन अपने गोत धनि रहीम जल पंक को, सबै चहत उत्साय। लघु जिय पिअत अघाय।मृग उछरत आकास कोउदधि बड़ाई कौन हे, भूमी खनत बराह॥158॥जगत पिआसो जाय॥114॥
रहिमन अब वे विरिछ कहंधरती की सी रीत है, जिनकी छांह गंभीर। सीत घाम औ मेह।बागन बिच बिच देखियतजैसी परे सो सहि रहै, सेहुड़ कंज करीर॥159॥त्‍यों रहीम यह देह॥115॥
रहिमन सूधी चाल तेंधूर धरत नित सीस पै, प्यादा होत उजीर। कहु रहीम केहि काज।फरजी मीर न है सकेजेहि रज मुनिपत्‍नी तरी, टेढ़े की तासीर॥160॥सो ढूँढ़त गजराज॥116॥
रहिमन खोटि आदि कीनहिं रहीम कछु रूप गुन, सो परिनाम लखाय। नहिं मृगया अनुराग।जैसे दीपक तम भरवैदेसी स्‍वान जो राखिए, कज्जल वमन कराय॥161॥भ्रमत भूख ही लाग॥117॥
रहिमन राज सराहिएनात नेह दूरी भली, ससि सुखद जो होय। लो रहीम जिय जानि।कहा बापुरो भानु निकट निरादर होत है, तपै तरैयन खोय॥162॥ज्‍यों गड़ही को पानि॥118॥
रहिमन आंटा के लगेनाद रीझि तन देत मृग, बाजत है दिन रात। नर धन हेत समेत।घिउ शक्कर जे खात हैंते रहीम पशु से अधिक, तिनकी कहां बिसात॥163॥रीझेहु कछू न देत॥119॥
रहिमन एक दिन वे रहे, बीच न सोहत हार। वायु जो ऐसी बस गई, बीचन परे पहार॥164॥ रहिमन रिति सराहिए, जो घत गुन सम होय। भीति आप पै डारि कै, सबै मियावे तोय॥165॥रीति प्रीति सबसों भली, बैर न हित मित गोत। रहिमन याही जनम की, बहुरि न संगति होत॥166॥ रहिमन नीचन संग बसि, लगत कलंक न काहि। दूध कलारी निज कर गहे, मद समुझैं सब ताहि॥167॥ समय लाभ समय लाभ नहिं, समय चूक सम चूक। चतुरन चित रहिमन लगी, समय चूक की हूक॥168॥ रहिमन नीच प्रसंग ते, नित प्रति लाभ विकार। नीर चोरावै संपुटी, भारू सहे धारिआर॥169॥ रहिमन दानि दरिद्रतर, तऊ जांचिबे योग। ज्यों सरितन सूखा करे, कुआं खनावत लोग॥170॥ रहिमन तीर की चोट ते, चोट परे बचि जाय। नैन बान की चोट तैं, चोट परे मरि जाय॥171॥ रुप बिलोकि क्रिया रहीम तहंकहि, जहं तहं मन लगि जाय। याके ताकहिं आप बहु, लेत छुड़ाय, छुड़ाय॥172॥ सदा नगारा कूच का, बाजत आठो जाम। रहिमन या जग आइकै, का करि रहा मुकाम॥173॥ समय पाय फल होत है, समय पाय झरि जात। सदा रहै नहीं एक सी, का रहीम पछितात॥174॥ रहिमन आलस भजन में, विषय सुखहिं लपटाय। घास चरै पसु स्वाद तै, गुरु गुलिलाएं खाय॥175॥ रहिमन वित्त अधर्म को, जरत न लागै बार। चोरी करि होरी रची, भई तनिक में छार॥176॥रहिमन जो तुम कहत थे, संगति ही गुन होय। बीच उखारी रसभरा, रह काहै ना होय॥177॥ रहिमन रिस को छांड़ि कै, करो गरीबी भेस। मीठो बोलो, नै चलो, सबै तुम्हारो देस॥178॥ रहिमन मारगा प्रेम को, मर्मत हीत मझाव। जो डिरिहै ते फिर कहूं, नहिं धरने को पांव॥179॥ रहिमन सुधि सब ते भली, लगै जो बारंबार। बिछुरे मानुष फिर मिलें, यहै जान अवतार॥180॥ रहिमन चाक कुम्हार को, मांगे दिया न देई। छेद में ड़डा डारि कै, चहै नांद लै लेई॥181॥ रहिमन विपदा हू भली, जो थोरे दिन होय। हित अनहित मा जगत में, जानि परत सब कोय॥182॥ रहिमन रजनी ही भली, पिय सों होय मिलाप। खरो दिवस केहि काम जो, रहिबो आपुहि आप॥183॥ रहिमन बात अगम्य की, कहन सुनन की नाहिं। जो जानत सो कहत नहिं, कहत ते जानत नाहिं॥184॥ रहिमन अंसुवा नैन ढरि, जिय दुख प्रगट करेइ। जाहि निकारो गेह तें, कस न भेद कहि देइ॥185॥ रहिमन मंदत बड़ेन की, लघुता होत अनूप। बलि मरद मोचन को गए, धरि बावन को रूप॥186॥ रहिमन याचकता गहे, बड़े छोट है जात। नारायण हू को भयो, बावन अंगूर गात॥187॥समय दसा कुल देखिकै, सबै करत सनमान। रहिमन दीन अनाथ को, तुम बिन को भगवान॥188॥ सरवर भाव के खग एक से, बाढ़त प्रीति न धीम। हाथ।पै मराल को मानसर, एकै ठौर रहीम॥189॥ रहिमन ठठरी धूर की, रही पवन ते पूरि। गांठ युक्ति की खुलि गई, अन्त धूरि की धूरि॥190॥ राम राम जान्यो नहीं, भइ पूजा में हानि। कहि रहीम क्यों मानिहैं, जम के किंकरकानि॥191॥ रहिमन सो न कछू गनै, जासों लागो नैन। सहि के सोच बेसाहियो, गयो पाँसे अपने हाथ को चैन॥192॥ रूप कथा पद चारू पट, कंचन दोहा लाल। ज्यों ज्यों निरखत सूक्ष्म गति, मोल रहीम बिसाल॥193॥ लिखी रहीम लिलार में, भई आन की आन। पद कर काटि बनारसी, पहुंचे मगहर थान॥194॥ रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय। टूटे से फिर दॉंव मिले, मिले तो गांठ पड़ जाय॥195॥ रहिमन धरिया रहंट की, त्यों ओछे की डीठ। रीतेहि सन्मुख होत है, भरी दुखावै पीठ॥196॥ रहिमन लाख भली करो, अगुने अपुन न जाय। राग सुनत पय पुअत हूं, सांप सहज धरि खाय॥197॥ रहिमन तुम हमसों करी, करी करी जो तीर। बाढ़े दिन के मीत हो, गाढ़े दिन रघुबीर॥198॥ रहिमन बिगरी आदि की, बनै न खरचे दाम। हरि बाढ़े आकास लौं, तऊ बावने नाम॥199॥ रहिमन पर उपकार के, करत न यारी बीच। मांस दियो शिवि भूप ने, दीन्हो हाड़ दधीच॥200॥अपने हाथ॥120॥
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