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चकित भँवरि रहि गयो / गँग

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[[Category:छप्पय]]
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चकित भँवरि रहि गयो, गम नहिं करत कमलवन., अहि फन मनि नहिं लेत, तेज नहिं बहत पवन वन.वन। हंस मानसर तज्यो चक्क चक्की न मिलै अति., बहु सुंदरि पदिमिनी पुरुष न चहै, न करै रति.रति। खलभलित सेस कवि गंग भन, अमित तेज रविरथ खस्यो., खानान खान बैरम सुवन जबहिं क्रोध करि तंग कस्यो.कस्यो॥
'''कहा जाता है कि यह छप्पय [[रहीम|अब्दुर्रहीम ख़ानख़ाना]] को इतना पसंद आया कि उन्होनें केवल इस एक छप्पय के लिए [[गँग|कविवर गँग]] को छत्तीस लाख रूपए का ईनाम दिया था।'''
</poem>
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