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|रचनाकार=डेविड मेसन|अनुवादक=कल्पना सिंह चिटणीस
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<Poem>
घास से उठती आभा चमकती है
सांसारिकता की ढूह पर।
विलीन हो जायेगी जाएगी यह भी,पर क्या होगा यह सब शीघ्र?
एक पतंग धागे को सिर हिलाती है।है ।
एक बादल बुनता है
उठती-गिरती लहरों के ऊपर,
दूसरे बादल से जुड़ते हुए।हुए ।
वे सब एक हुजूम की तरह आगे बढ़ते हैं,
और आसमान एक क$फन कफ़न बन जाता हैसूरज के उस्तरे से कट कर।कर ।उसके बाद, कुछ भी करने को बाकी नहीं।नहीं ।
आत्मा, अगर सच में कोई आत्मा है,
विचार-मंथन करता हुआ
नया कहने को कुछ नहीं।नहीं ।दिन बना घंटों घण्टों से,घंटे घण्टे क्षणों से,
पर इनमें से भी कोई अपना नहीं।नहीं ।
रेतीली हवा बाड़ों से होकर गुजरती है,
घास की आभा मंद होती है
पर यह भी तो क्षणभंगुर।क्षणभंगुर । और अब यही कविता मूल अमरीकी अँग्रेज़ी में पढ़ें। '''SEA SALT''' Light dazzles from the grassover the carnal dune,This too shall come to pass,but will it happen soon? A kite nods to its string.A cloud is happeningabove the tripping waves,joined by another cloud. They are a crowd that moves.The sky becomes a shroudcut by a blade of sun.There’s nothing to be done. The soul, if there’s a soulmoves out to what it loves,whatever makes it whole.The sea stands still and moves, denoting nothing new,deliberating now.The days are made of hours,hours of instances.and none of them are ours.The sand blows through the fences.Light darkens on the grass.This too shall come to pass.</Poem>