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|रचनाकार=रामदरश मिश्र
|संग्रह=दिन एक नदी बन गया / रामदरश मिश्र
}}
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<poem>
चारों ओर काँटों का जंगल है
और भीतर कहीं
एक डरी हुई लता है।
जाओ, चले जाओ
यही उसके घर का पता है।
</poem>
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|संग्रह=दिन एक नदी बन गया / रामदरश मिश्र
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चारों ओर काँटों का जंगल है
और भीतर कहीं
एक डरी हुई लता है।
जाओ, चले जाओ
यही उसके घर का पता है।
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