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|रचनाकार=रामदरश मिश्र
|संग्रह=दिन एक नदी बन गया / रामदरश मिश्र
}}
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<poem>
हर दिन आता है
कुछ नये संकल्प लेकर
और शाम को छोड़ जाता है
रेत ही रेत
और हम हर सुबह
उस रेत में घरौंदे बनाते हैं।
</poem>
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|रचनाकार=रामदरश मिश्र
|संग्रह=दिन एक नदी बन गया / रामदरश मिश्र
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हर दिन आता है
कुछ नये संकल्प लेकर
और शाम को छोड़ जाता है
रेत ही रेत
और हम हर सुबह
उस रेत में घरौंदे बनाते हैं।
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