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{{KKRachna
|रचनाकार=रामदरश मिश्र
|संग्रह=दिन एक नदी बन गया / रामदरश मिश्र
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
चेहरे पर
कुछ सख्त अँगुलियों के दर्द-भरे निशान हैं
और कुछ अँगुलियाँ
उन्हें दर्द से सहलाती हैं।
कुछ आँखें
आँखों में उड़ेल जाती हैं रात के परनाले
और कुछ आँखें
उन्हें सुबह के जल में नहलाती हैं।
ये दर्द-भरी अँगुलियाँ
ये सुबह-भरी आँखें
जहाँ कहीं भी हैं
मेरी माँ हैं।
माँ, जब तक तुम हो
मैं मरूँगा नहीं।
</poem>
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|संग्रह=दिन एक नदी बन गया / रामदरश मिश्र
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चेहरे पर
कुछ सख्त अँगुलियों के दर्द-भरे निशान हैं
और कुछ अँगुलियाँ
उन्हें दर्द से सहलाती हैं।
कुछ आँखें
आँखों में उड़ेल जाती हैं रात के परनाले
और कुछ आँखें
उन्हें सुबह के जल में नहलाती हैं।
ये दर्द-भरी अँगुलियाँ
ये सुबह-भरी आँखें
जहाँ कहीं भी हैं
मेरी माँ हैं।
माँ, जब तक तुम हो
मैं मरूँगा नहीं।
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