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{{KKRachna
|रचनाकार=विजय कुमार सप्पत्ति
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
अक्सर मैं सोचता हूँ कि,
मैं तुम्हारे संग बर्फ़ीली वादियों में खो जाऊँ!
और तुम्हारा हाथ पकड़ कर तुम्हें देखूं ...
तुम्हारी मुस्कराहट;
जो मेरे लिए होती है, बहुत सुख देती है मुझे.....
उस मुस्कराहट पर थोड़ी-सी बर्फ़ लगा दूं।
यूँ ही तुम्हारे संग देवदार के लम्बे और घने सायों में
तुम्हारा हाथ पकड़ कर चलूँ......
और उनके सायों से छन कर आती हुई धूप से
तुम्हारे चेहरे पर आती किरणों को,
अपने चेहरे से रोक लूं.....
यूँ ही किसी चांदनी रात में
समंदर के किनारे बैठ कर
तुम्हें देखते हुए;
आती-जाती लहरों से तेरा नाम पूछूँ ..
यूँ ही, किसी घने जंगल के रास्तों पर
टेड़े-मेढ़े राहों पर पड़े सूखे पत्तों पर चलते हुए
तुम्हें प्यार से देखूं ..
और; तुम्हारा हाथ पकड़ कर आसमान की ओर देखूं
और उस ख़ुदा का शुक्रिया अदा करूँ।
और कहूँ कि -
मैं तुमसे प्यार करता हूँ....
</poem>
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|रचनाकार=विजय कुमार सप्पत्ति
|अनुवादक=
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अक्सर मैं सोचता हूँ कि,
मैं तुम्हारे संग बर्फ़ीली वादियों में खो जाऊँ!
और तुम्हारा हाथ पकड़ कर तुम्हें देखूं ...
तुम्हारी मुस्कराहट;
जो मेरे लिए होती है, बहुत सुख देती है मुझे.....
उस मुस्कराहट पर थोड़ी-सी बर्फ़ लगा दूं।
यूँ ही तुम्हारे संग देवदार के लम्बे और घने सायों में
तुम्हारा हाथ पकड़ कर चलूँ......
और उनके सायों से छन कर आती हुई धूप से
तुम्हारे चेहरे पर आती किरणों को,
अपने चेहरे से रोक लूं.....
यूँ ही किसी चांदनी रात में
समंदर के किनारे बैठ कर
तुम्हें देखते हुए;
आती-जाती लहरों से तेरा नाम पूछूँ ..
यूँ ही, किसी घने जंगल के रास्तों पर
टेड़े-मेढ़े राहों पर पड़े सूखे पत्तों पर चलते हुए
तुम्हें प्यार से देखूं ..
और; तुम्हारा हाथ पकड़ कर आसमान की ओर देखूं
और उस ख़ुदा का शुक्रिया अदा करूँ।
और कहूँ कि -
मैं तुमसे प्यार करता हूँ....
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