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'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामदरश मिश्र |अनुवादक= |संग्रह=51 ग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
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{{KKRachna
|रचनाकार=रामदरश मिश्र
|अनुवादक=
|संग्रह=51 ग़ज़लें / रामदरश मिश्र
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
इस हाल में जाने न कैसे रह रहीं ये बस्तियाँ,
सुनता नहीं ऊपर कोई, कुछ कह रहीं ये बस्तियाँ
रोटी नहीं, पानी नहीं, अपने नहीं, सपने नहीं
वादे सियासत के कभी से सह रहीं ये बस्तियाँ
गर एक चिंगारी उठी तो ये धधक कर जल उठीं,
यदि टूट कर पानी गिरा तो बह रहीं ये बस्तियाँ
कोई सहारा है नहीं, मासूम लावारिस हैं ये
हैं लड़खड़ा कर उठ रहीं फिर ढर रहीं ये बस्तियाँ
ख़ामोश-सी लगतीं मगर विस्फोट होगा एक दिन
ज्वालामुखी-सी खुद के अंदर दहक रहीं ये बस्तियाँ
</poem>
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|अनुवादक=
|संग्रह=51 ग़ज़लें / रामदरश मिश्र
}}
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इस हाल में जाने न कैसे रह रहीं ये बस्तियाँ,
सुनता नहीं ऊपर कोई, कुछ कह रहीं ये बस्तियाँ
रोटी नहीं, पानी नहीं, अपने नहीं, सपने नहीं
वादे सियासत के कभी से सह रहीं ये बस्तियाँ
गर एक चिंगारी उठी तो ये धधक कर जल उठीं,
यदि टूट कर पानी गिरा तो बह रहीं ये बस्तियाँ
कोई सहारा है नहीं, मासूम लावारिस हैं ये
हैं लड़खड़ा कर उठ रहीं फिर ढर रहीं ये बस्तियाँ
ख़ामोश-सी लगतीं मगर विस्फोट होगा एक दिन
ज्वालामुखी-सी खुद के अंदर दहक रहीं ये बस्तियाँ
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