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दिमाग़ी गुहान्धकार का ओरांगउटांग! / गजानन माधव मुक्तिबोध
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15:00, 27 जनवरी 2008
अहं को, तथ्य के बहाने। <br>
मेरी जीभ एकाएक ताल से चिपकती <br>
'
''अक??आरयुक्त
'
''-सी होती है <br>
और मेरी आँखें उन बहस करनेवालों के <br>
कपड़ों में छिपी हुई <br>
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Sumitkumar kataria