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स्वपिति च पादपथे
भुजाया उपधानं कृत्वा॥
(2)
ईश्वरः
हसति बालमुखे
रोदिति निर्धननेत्रयोः॥
(34)
ईश्वरस्य गवेषणायां
भ्रान्तोऽहम्