भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
हमारे आधे दिन के इस अन्धियारे घर को
कोई नहीं था रजामन्द फिर भी मुखिया ने कहा ,
“तुम आ सकती हो”
किसी ने स्वागत नहीं किया,