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यदि होता किन्नर नरेश मैं, राजमहल राज महल में रहता,सोने का सिंहासन होता, सिर पर मुकुट चमकता।
बंदी जन गुण गाते रहते, दरवाजे पर मेरे,प्रतिदिन नौबत बजती रहती, संध्या और सवेरे।
मेरे वन में सिह सिंह घूमते, मोर नाचते आँगन,;मेरे बागों में कोयलिया, बरसाती मधु रस-कण।
यदि होता किन्नर नरेश मैं, शाही वस्त्र पहनकर,मेरे तालाबों में खिलतीहीरे, पन्ने, मोती माणिक, मणियों से सजधज कर।कमल-दलों की पाँती;बहुरंगी मछलियाँ तैरतीतिरछे पर चमकातीं।
बाँध खडग तलवारयदि होता किन्नर नरेश मैंशाही वस्त्र पहनकर;हीरे, सात घोड़ों के रथ पर चढ़तापन्ने,मोती, माणिक-बड़े सवेरे ही किन्नर के राजमार्ग पर चलता।मणियों से सज धज कर,
राज महल से धीमे-धीमे, आती देख सवारी,बाँध खड्ग तलवार सातरूक जाते पथ, दर्शन करने प्रजा उमड़ती सारी।घोड़ों के रथ पर चढ़ता;बड़े सवेरे ही किन्नर केराजमार्ग पर चलता।
जय किन्नर नरेश की जय हो, के नारे लग राजमहल से धीमे-धीमेआती देख सवारी;रुक जातेपथ,दर्शन करनेहर्षित होकर मुझ पर सारे, लोग फूल बरसाते।प्रजा उमड़ती सारी।
‘जय किन्नर नरेश की जय हो’के नारे लग जाते;हर्षित होकर मुझ पर सारेलोग फूल बरसाते। सूरज के रथ-सा, मेरा रथ आगे बढ़ता जाता,;बड़े गर्व से अपना वैभव, निरख-निरख सुख पाता।  तब लगता मेरी ही हैं येशीतल, मंद हवाएँ;झरते हुए दूधिया झरनेइठलाती सरिताएँ। हिम से ढकी हुई चाँदी-सीपर्वत की मालाएँ;फेन रहित सागर, उसकीलहरें करतीं क्रीड़ाएँ। दिवस सुनहरे, रात रुपहलीऊषा-साँझ की लाली;छन-छनकर पत्तों से बुनतीहुई चाँदनी जाली!
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