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यदि होता किन्नर नरेश मैं, राजमहल राज महल में रहता,सोने का सिंहासन होता, सिर पर मुकुट चमकता।
बंदी जन गुण गाते रहते, दरवाजे पर मेरे,प्रतिदिन नौबत बजती रहती, संध्या और सवेरे।
मेरे वन में सिह सिंह घूमते, मोर नाचते आँगन,;मेरे बागों में कोयलिया, बरसाती मधु रस-कण।
‘जय किन्नर नरेश की जय हो’के नारे लग जाते;हर्षित होकर मुझ पर सारेलोग फूल बरसाते। सूरज के रथ-सा, मेरा रथ आगे बढ़ता जाता,;बड़े गर्व से अपना वैभव, निरख-निरख सुख पाता। तब लगता मेरी ही हैं येशीतल, मंद हवाएँ;झरते हुए दूधिया झरनेइठलाती सरिताएँ। हिम से ढकी हुई चाँदी-सीपर्वत की मालाएँ;फेन रहित सागर, उसकीलहरें करतीं क्रीड़ाएँ। दिवस सुनहरे, रात रुपहलीऊषा-साँझ की लाली;छन-छनकर पत्तों से बुनतीहुई चाँदनी जाली!
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