भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पापा की ऐनक / निशेष ज़ार

830 bytes added, 18:37, 27 सितम्बर 2015
'{{KKRachna |रचनाकार=निशेष ज़ार |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatBaalKavita}} <po...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKRachna
|रचनाकार=निशेष ज़ार
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatBaalKavita}}
<poem>पापा जी की प्यारी ऐनक,
जरा हमें बतलाओ तो-
हमको तो गोदी में पापा
कभी-कभी बिठलाते हैं,
तुम्हें नाक पर चढ़ा हमेशा
पुस्तक में खो जाते हैं।

घर से बाहर भी जब जाते
साथ तुम्हें ले जाते हैं,
हम तुमको छूना चाहें तो
गुस्सा भी हो जाते हैं।
आखिर क्या है तुममें ऐसा,
हमको भी समझाओ तो!
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
2,956
edits