भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कानाबाती कुर्र / कुँअर बेचैन

970 bytes added, 05:55, 28 सितम्बर 2015
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुँअर बेचैन |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=कुँअर बेचैन
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatBaalKavita}}
<poem>अरी चिरइया नींद की,
हो जा जल्दी फुर्र!
कानाबाती कुर्र!

छोड़ अपने आराम को
सूरज निकला काम को,
देकर सबको रोशनी
घर लौटेगा शाम को।
तू भी जल्दी छोड़ दे
खर्राटों की खुर्र!
कानाबाती कुर्र!

जगीं शहर की मंडियाँ
गाँवों की पगडंडियाँ,
खेतों ने भी दिखलाईं
हरी फसल की झंडियाँ।
चली सड़क पर मोटरें
घर-घर-घर-घर घुर्र!
कानाबाती कुर्र!
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
2,956
edits