भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

रेल चली छुक-छुक / अजय जनमेजय

755 bytes added, 19:00, 29 सितम्बर 2015
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अजय जनमेजय |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatBaa...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=अजय जनमेजय
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatBaalKavita}}
<poem>रेल चली छुक-छुक,
रेल चली छुक-छुक!

रेल में थे नाना,
साथ लिए खाना।
खाना खाया चुप-चुप,
रेल चली छुक-छुक!

रेल में थी दादी,
बिल्कुल सीधी-सादी।
देख रही टुक-टुक,
रेल चली छुक-छुक!

रेल में थी मुनिया,
देखने को दुनिया।
दिल करे धुक-धुक,
रेल चली छुक-छुक!
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
2,956
edits