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{{KKRachna
|रचनाकार=सुरेश विमल
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatBaalKavita}}
<poem>लगते हैं केले के पत्ते
हाथी के से कान!
पीपल के पत्तों की होती
चूहे जैसी पूँछ,
ताड़-वृक्ष के पत्ते लगते
रावण की-सी मूँछ।
पात कमल के देख-देख
आता कछुए का ध्यान!
दिखते हैं जो खटमल जैसे
पत्ते हैं इमली के,
सेही के शरीर-से होते
पत्ते नागफनी के!
पात खजूरों के लगते हैं
तरकश के-से बान!
</poem>
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<poem>लगते हैं केले के पत्ते
हाथी के से कान!
पीपल के पत्तों की होती
चूहे जैसी पूँछ,
ताड़-वृक्ष के पत्ते लगते
रावण की-सी मूँछ।
पात कमल के देख-देख
आता कछुए का ध्यान!
दिखते हैं जो खटमल जैसे
पत्ते हैं इमली के,
सेही के शरीर-से होते
पत्ते नागफनी के!
पात खजूरों के लगते हैं
तरकश के-से बान!
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