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फिर कभी / पद्मा चौगांवकर

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<poem>नदी किनारे पंछी आकर,
बोला जल में चोंच डुबाकर-
‘मछली रानी, ओ दीवानी,
क्यों करती है, पानी-पानी,
क्यों न हवा से बात करे,
आसमान आबाद करे?’

मछली तब लहरों पर डोली,
धीरे से मुसकाकर बोली-
ओ पगले पंछी मस्ताने,
तू क्या जल की बातें जाने,
व्यर्थ उड़ानें ऊँची भरकर,
आखिर आता इसी जमीं पर!

आ, लहरों पर खेलें-नाचें,
आ, जल का तल नापें-जाँचें
सुनकर पंछी चौंका संभला,
सचमुच मुझे हो गया नज़ला।

है बुखार भी रहता अकसर,
और तौलिया छूटा घर पर,
राम राम फिर कभी मिलेंगे,
पानी में नाचें-खेलेंगे।
</poem>
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