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सपने में / जहीर कुरैशी

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<poem>बबलू के ‘पर’ उग आते हैं सपने में,
बबलू पंछी बन जाते हैं सपने में।

पिंटू सपने में परियों से मिलते हैं,
उनको अपने घर लाते हैं सपने में।

अकसर सात महीने के आशू बेटे,
सोते-सोते मुस्काते हैं सपने में।

नीटू जी छत की मुँडेर से गिरते ही,
‘ओ मम्मी जी’ चिल्लाते हैं सपने में।

चिंटू पापा बनकर छड़ी उठाते हैं
पापा चिंटू बन जाते हैं सपने में।

बच्चे दिन में जो भी गलती करते हैं,
अकसर उस पर पछताते हैं सपने में!
</poem>
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