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फूल हैं हम / यश मालवीय

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<poem>गीत - नाटक - चित्रकारी,
कार्यशाला है हमारी।

नए स्वर से सज रहे हैं
तालियों से बज रहे हैं,
जिंदगी के रंग हैं हम
मुश्किलें सब तज रहे हैं।

ऊँट के चरचे कहीं हैं,
कहीं घोड़े की सवारी।

हँसी, कविता, कहकहे हैं
हम कि झरनों से बहे हैं,
ध्यान से सुनिए कि हमने
बहुत-से किस्से कहे हैं।

फूल हैं हम, खोलते हैं,
रोज खुशबू की पिटारी!

हम किताबें पढ़ रहे हैं
और खुद को गढ़ रहे हैं,
भोर के सूरज सरीखे
आसमां पर चढ़ रहे हैं।
आँख में सपने, खिलौनों-
से भरी है अलमारी!

कार्टूनों से किलकते
रोज ही कुछ नया लिखते,
देह पर खिलता पसीना
हम कभी भी नहीं थकते।
लोरियों से गूँजते हैं,
नींद में भरते हुंकारी।
</poem>
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