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हाथी बेचारा / यश मालवीय

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<poem>सबकी बनी सवारी लेकिन
उसकी नहीं सवारी है,
परेशान हाथी बेचारा
कैसी दुनियादारी है?
यही सोच, खुद को समझाया-
शायद सबसे भारी है,
इसीलिए पैदल चलता है,
उसकी नहीं सवारी है।
उसकी अगर सवारी होती
चर्र-चर्र, चूँ-चूँ करती,
गिर पड़ता तो अस्पताल में
कौन उसे करता भरती।
</poem>
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