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तितली का घर / आर.पी. सारस्वत

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<poem>सज-धज करके कैसी आई,
मैडम बटर फ्लाई।
इस डाली से उस डाली तक
झट से उड़कर जाती,
फूल-फूल के पास पहुँचकर
हँस-हँसकर बतलाती
हँसते रहना ही जीवन है
सुन लो मेरे भाई!
रंग-बिरंगे पंखों से यह
अपनी ओर लुभाती,
जब भी चाहूँ इसे पकड़ना
लेकिन हाथ न आती!
ऐसी बात इसे दादी जी
है किसने समझाई?
चींटी का घर, चूहों का घर
चिड़िया का भी घर है,
नहीं मिला पर तितली का घर
तुमको पता, किधर है?
ढूँढ़ रहा हूँ कब से, अब तक
दिया नहीं दिखलाई!
</poem>
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