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|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
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<poem>दादी का हो या नानी का,
राजा का हो या रानी का,
किस्सा बस किस्सा होता है!
बूढ़े सुनते हों, या बच्चे,
किस्से झूठे हों या सच्चे,
सबका ही हिस्सा होता है!
कभी हँसाता, कभी रुलाता,
दूर भगाता, पास बुलाता,
किस्सा क्या घिस्सा होता है!
-साभार: पराग, जून 1978, 4
</poem>
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राजा का हो या रानी का,
किस्सा बस किस्सा होता है!
बूढ़े सुनते हों, या बच्चे,
किस्से झूठे हों या सच्चे,
सबका ही हिस्सा होता है!
कभी हँसाता, कभी रुलाता,
दूर भगाता, पास बुलाता,
किस्सा क्या घिस्सा होता है!
-साभार: पराग, जून 1978, 4
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