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{{KKRachna
|रचनाकार=बाबूलाल शर्मा 'प्रेम'
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatBaalKavita}}
<poem>बड़े सवेरे जब खिलते
बेला, गुलाब, कचनार,
मुझे बहुत प्यारा तब लगता
फूलों का संसार!
गेंदा, चंपा और चमेली
महकी-महकी हैं अलबेली,
आँगन में आ गई अचानक
आज बसंत बहार!
रंग-रंग के फूल खिले हैं
मुझसे तो सब हिले-मिले हैं,
फूलों की सारी बगिया है
अपना ही परिवार।
रंग घोलते, महक लुटाते
फूल हमेशा ही मुस्काते,
धूप ताप हो, चाहे वर्षा
पड़े मूसलाधार!
</poem>
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|रचनाकार=बाबूलाल शर्मा 'प्रेम'
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
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<poem>बड़े सवेरे जब खिलते
बेला, गुलाब, कचनार,
मुझे बहुत प्यारा तब लगता
फूलों का संसार!
गेंदा, चंपा और चमेली
महकी-महकी हैं अलबेली,
आँगन में आ गई अचानक
आज बसंत बहार!
रंग-रंग के फूल खिले हैं
मुझसे तो सब हिले-मिले हैं,
फूलों की सारी बगिया है
अपना ही परिवार।
रंग घोलते, महक लुटाते
फूल हमेशा ही मुस्काते,
धूप ताप हो, चाहे वर्षा
पड़े मूसलाधार!
</poem>