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{{KKRachna
|रचनाकार=मोक्ष गौड़
|अनुवादक=
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}}
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<poem>काले-काले बादल आए,
अपने सँग में पानी लाए।
बूँदें आईं झर-झर, झर-झर,
सूख रहे थे कपड़े छत पर।
जब तक दीदी उन्हें उतारे,
भीग गए सारे के सार।
-साभार: आँख मिचौली, मोक्ष गौड़, 8,11
</poem>
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बूँदें आईं झर-झर, झर-झर,
सूख रहे थे कपड़े छत पर।
जब तक दीदी उन्हें उतारे,
भीग गए सारे के सार।
-साभार: आँख मिचौली, मोक्ष गौड़, 8,11
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